गुरुवार, 1 जुलाई 2010

कान्वआश्रम -भारत के महान सम्राट भरत की जन्मस्थली

सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार ,
अतिशीघ्र ही मै आप सभी पाठक गणों के लिए एक ऐसे स्थान की जानकारी पोस्ट करने जा रहा हूँ .जिसका सम्बन्ध उस महान प्रतापी सम्राट से था जिसके नाम से हमारे देश का नाम भारतवर्ष विख्यात  हुआ .यह स्थान आज तक भी इतिहासकारों  की नज़र से दूर है .लेकिन यहाँ पर प्राचीन इतिहास आज भी  कण-कण में बिखरा पड़ा है.

शुक्रवार, 25 जून 2010

चित्रावली - आयुर्वेद के जनक चरक ऋषि के तपस्थल चरक डांडा में उनसे जुड़े कुछ अवशेष


गतांक से आगे -
महान ऋषि चरक कौन थे, उनका कार्यकाल क्या था और कहाँ के रहने वाले थे ? इसकी प्रामाणिक जानकारी नहीं थी . महान ऋषि चरक के अस्तित्व पर विरोधाभास को दूर करने के लिए विगत दो वर्ष पूर्व मैंने आयुर्वेद के इतिहास की अनेक पुस्तकों का गहन अध्ययन प्रारंभ किया और अनेक विद्वानों  से संपर्क किया .
प्राचीन ग्रंथों के गहन अध्ययन एवं शोध के परिणाम- स्वरुप मैंने हिमालय  की दुर्गम चोटी पर  वह स्थान खोज लिया जहाँ पर रहकर चरक ऋषि  ने  आयुर्वेद के अनेक अनुसन्धान कर चिकित्सा-विज्ञान के महान ग्रन्थ चरक संहिता की रचना की थी .
यह स्थान समुद्र तल से लगभग ७००० फीट की ऊँचाई पर स्थित है . इस स्थान को स्थानीय ग्रामीण चरक का डांडा , चरक की चोटी एवं चरक-आरण्य पर्वत आदि नामों से पुकारते हैं .यहाँ पर एक चिरयुवा बाँझ का वृक्ष है , जिसकी पूजा स्थानीय ग्रामीण चरक देवता , चरक बाबा के रूप मे करते हैं . सदियों -सदियों से यहाँ यह परम्परा चली आ रही है .चरक संहिता मे  वर्णित अनेक दिव्य-औषधियों का जो वर्णन है जिनको जड़ी -बूटी विशेषज्ञ भी आज लुप्त प्राय : मान चुके हैं वह औषधियां बड़ी सुगमता के साथ यहाँ पर मिलती हैं .
स्थानीय ग्रामीणों के पास कुछ प्राचीन दवाई  बनाने के खरल भी सुरक्षित हैं जो कभी यहाँ से इनके पूर्वजों को खुदाई मे प्राप्त हुए थे . और भी अनेक प्राचीन  भग्नावशेष चारों और विद्यमान  हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं . अनेक ऐतिहासिक तथ्य एवं प्रमाणों के आधार पर महान ऋषि चरक कौन थे , उनका कार्यकाल क्या था और कहाँ के रहने वाले थे ? सभी अनसुलझे सवालों को दृष्टिगत  रखते हुए प्रमाणिकता के आधार पर इस अनुसन्धान को सफलता पूर्वक पूर्ण कर लिया गया है.
 आज इस खोज और अनुसन्धान ने आयुर्वेद के २००० वर्षों के इतिहास मे एक नया अध्याय  जोड़ने मे सफलता प्राप्त की है . और इस महत्वपूर्ण खोज के फलस्वरूप ही उत्तराखंड सरकार ने इस दुर्गम स्थान तक मोटर -मार्ग का निर्माण किया है. और अभी हाल ही १६ जून २०१० को  मंत्रिमंडल की बैठक मे चरक डांडा मे एक अंतराष्ट्रीय आयुर्वेद शोध संस्थान बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई . स्वयं उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री माननीय डॉ. रमेश पोखरियाल  निशंक इस स्थान को विश्वस्तरीय बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं .
 मैंने इस अभियान और अनुसन्धान पर एक पुस्तक लिखी है -चरक जन्मस्थली पर आधारित एक प्रामाणिक शोध जिसका प्रकाशन चौखम्भा वाराणसी  द्वारा किया गया . और  साथ ही एक वृतचित्र   चरक -एक खोज    का निर्माण किया है . जिससे आयुर्वेद मे रूचि रखने वाले व्यक्ति एवं अन्य जिज्ञासु व्यक्तियों को सम्पूर्ण घटनाक्रम की जानकारी प्राप्त हो सकें .

बुधवार, 23 जून 2010

आयुर्वेद के जनक महान ऋषि चरक पर एक प्रामाणिक शोध

विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति एवं भारत की सांस्कृतिक धरोहर आयुर्वेद जिसका उद्गम देवभूमि उत्तराखंड मे स्थित देवतात्मा हिमालय में हुआ. इसी देवतात्मा हिमालय मे अनेक ऋषि -मुनियों ने तपस्या मे लीन होकर ग्रंथों एवं  पुराणों की रचना की है. 
आयुर्वेद का सबसे प्राचीन,विश्व विख्यात,सर्वमान्य एवं महानतम चिकित्सा ग्रन्थ चरक संहिता है .और चरक ऋषि इस ग्रन्थ के  रचनाकार ,आयुर्वेद के जनक एवं विश्व के सर्वप्रथम चिकित्सक माने जाते हैं .  
चरक संहिता के १२० अध्यायों मे १२००० श्लोकों मे लगभग २००० औषध-योगों की विस्तृत व्याख्या के साथ चिकित्सा शास्त्र एवं सम्पूर्ण जीवन-दर्शन वर्णित है .लकिन आयुर्वेद के इतिहास में चरक संहिता के रचयिता एवं आयुर्वेद के जनक चरक ऋषि के अस्तित्व को लेकर लगभग २००० वर्षों से इतिहासकारों और विद्वानों के बीच विरोधाभास की स्थिति रही है.क्योंकि ऋषियों ने कभी भी अपने परिचय के सन्दर्भ मे,अपने स्थान के सन्दर्भ मे  बहुत कुछ अपने ग्रंथों में वर्णन नहीं किया है.
इसलिए यदि हम उनका इतिहास , उनके कार्य स्थल , कुल ,वंश ,परम्परा इन सब विषयों को जाननें की बात करतें हैं तो,ये काफी जटिल और कठिन कार्य है . चरक ऋषि के अस्तित्व को लेकर भी अनेक मत प्रचलित रहें  हैं लेकिन कोई भी निश्चित निष्कर्ष नहीं मिलता .
क्रमश; 

गुरुवार, 18 मार्च 2010

देवभूमि उत्तराखंड

उत्तराखंड राज्य एक ऐसा राज्य है जिसको पूरे विश्व में देवभूमि के नाम से जाना जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि-उत्तराखंड की धरती को ही देवभूमि होने का गौरव और सम्मान क्यों प्राप्त है ? क्योंकि अनादिकाल से ही यहां स्थित पर्वतराज हिमालय पर अनेक देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों का वास रहा है।

सर्वप्रथम हिमालय में ही विश्व की सबसे पुरातन सभ्यता एवं संस्कृति का उदभव हुआ है। कालांतर मे ही अन्य सभ्यताएं विकसित हुई हैं।हमारे प्राचीन वैदिक साहित्य का सृजन एवं भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव भी इसी देवतात्मा हिमालय में हुआ है। इसके अनेक प्रमाण हमारे प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान हैं। आज भी हिमालय के कण-कण मे हमारा प्राचीन इतिहास छिपा हुआ है।
- जयवीर पुण्डीर

बुधवार, 17 मार्च 2010

नमस्कार,मै आप सभी सुधी पाठक गणों का हार्दिक स्वागत करता हूँ । देवभूमि-दर्शन नामक इस ब्लॉग को प्रारंभ करने के अवसर पर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। इस ब्लॉग के माध्यम से देवभूमि से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण एवं रोचक सांस्कृतिक जानकारी पहुँचाने का मेरा सदैव प्रयास रहेगा।आपके सुझाव एवं प्रतिक्रियाएं हमेशा मेरा मार्गदर्शन करेंगी।